दादी और सिया
सिया को सुननी रोज़ कहानी, पर दादी करती आनाकानी।
झपकी लेते ही दादी की, हटा देती वो मछरदानी
पीं पीं करते मच्छर जब, झटपट उठती दादी,
गुस्सा करती दादी को, दे देती है वो पानी,
गट-गट पीकर पानी, उड़ जाती जब नींद,
गले लगाकर सिया को ,सुनाती हैं वो कहानी,
रोज़ रोज़ अब आते मच्छर, पापा को कहती दादी,
भगाओ इन्हें, कुछ करो धुंआ या बदलो मछरदानी ,
क्यों कर घुसते अंदर मच्छर, कोई न जाने पहेली,
न छेद है इसमें, न कुछ और, सुन सिया हँसे अकेली।
पापा आये ऑफिस से, साथ में लाये आल-आउट,
हंसकर बोले दादी से, अब होंगे मच्छर गेट आउट
न आते अब मच्छर, न है मच्छर दानी,
नटखट सिया खोजे मौका पर चलती ना मनमानी।
वापस जाते देख उसे ,धीरे से बोली दादी –
गर सुननी हो कहानी, समय पर अपने आया करो तुम,
प्यारी सिया रानी।
~ वंदना ~