उसके हिस्से की धूप – निर्मला गर्ग
जब इंसान चुप होता है, तब भी वह कुछ न कुछ अपने भीतर बोल रहा होता है, कुछ है जो निरंतर चल रहा है। एक्शन्स वैसे नहीं होते या यह कहिये जो हो रहा है वो सोचने से अलग है। कभी ऐसा भी लगता है कि जो हो रहा है वही सच है और तभी एक्शन और मन दोनों मिल भी जातें है, जिस से पात्र फूला नहीं समाता। अपने ही अंदर की उधेड़बुन से बाहर निकलने की कहानी है यह उपन्यास। पढ़कर लगेगा यह हर स्त्री की प्रेम कहानी है, इसमें प्रेम में कोई मुश्किलें नहीं आती बस खुद के अंतर्द्वंद में मनीषा किसे चुनती है यही इस कहानी का आधार है। यहाँ चुनाव प्रेम करने और न करने के बीच न होकर खुद की स्वतंत्रा का है।