लम्हे
तुम कहते हो जल्दी ही, पर ये बता दो की,
कितना दूर है ये जल्दी का होना।
कितना छोटा है ये लंबा सफर,
क्यों नहीं कट जाता,
उतनी जल्दी जितना साथ होने पर
घडी की सुइयाँ भागती हैं।
तुम कहते हो सब्र रखो, पर ये तो बताओ,
कितना और दूर है ये इंतज़ार,
बहुत बहलाते हो तुम, और मैं पागल,
बस मान लेती हूँ तुम्हारी सब बातें,
पर ये वादा करो, जब मिलेंगे इस बार,
तो तुम रोक लोगे उस लम्हे को,
नहीं चलेंगी घड़ियों की सुइयाँ,
और ना होगा इंतज़ार लम्हे के
बीत जाने का।
~~ वंदना ~~