इच्छाशक्ति
जो रोक देता है,
दौड़ने से, वो डर ही है,
बाँध देता है अदृश्य रस्सी से,
नहीं बढ़ते पैर रिवाज़ों, मज़बूरियों, रिश्तों नातों के आगे,
नहीं रहती कुछ नया करने की इच्छा,
बस एक धुरी पर घूमना ही नियम बन जाता है,
कुछ ऐसा जो एक जैसा है, जो खो रहा है जीवन के मान्य,
जो दबाता है उसको जो बाहर निकलने का रास्ता खोज़ रहा है,
ख़ुशी और प्यार का रास्ता, वो दरवाज़ा जिससे बाहर आकर ही समझ आएगा
की कौन हैं हम,
सुनो जितना लगता है आसान बाहर आना
ये उससे भी आसान है,
बस एक कोशिश कर दौड़ लगानी है, इतना तेज़ भागना है की अपनी परछाई पीछे रह जाए,
तब नहीं देखना पीछे मुड़कर,
और फिर रुक जाना उस खुले मैदान
जहाँ वही जमीन और आसमान हैं जो दिखते थे तुम्हें सपने में,
हाँ यही है वो नरम घास जिस पर तुम सोना चाहते थे,
सुनो अब आ जाएगी नींद भी तुम्हें, पहली बार जो दौड़े हो इच्छाशक्ति के साथ।