हम सब के साथ ही , यह रास्ते, सड़कों पर दौड़ती गाड़ियाँ, भीड़, रिश्तेदारों का जमघट, परिवारों का प्यार-दुलार और झगड़ा सब उसके लिए बिलकुल नया है। सही मायनों में , इंसान जिस चीज़ से अनजान है शायद वही नया भी है। उसने कभी अपनी जीवन में इतनी भीड़ नहीं देखी , लाइन्स ज़रूर होती हैं यूरोप में परन्तु भीड़ नहीं होती। हर एक पल की फोटोज लेते हुए उसे शायद ऐसा लग रहा था की कहीं उसके मस्तिष्क से कोई भी पल छूट न जाए। हर लम्हे को वह अपने मोबाइल कैमरे में क़ैद करना चाहता था, और उसने किया भी।
पहला दिन तो घर में ही बीता, आलू पूरी खाते हुए तो खूब मज़े आये। परन्तु गैस देख कर उसे बहुत अच्छा लगा, उसके यहाँ इंडक्शन है जिस पर खाना धीरे धीरे बनता है। शाम को द्वारका हल्दीराम में हमने डिनर किया। उसके लिए सब अजीब सा था इतनी तरह की मिठाइयां एक साथ उसने शायद ही कहीं देखी होंगी।
किसी दिन दरियागंज रेस्टोरेंट तो किसी दिन कहीं ओर, हर दिन कि अपनी अलग कहानी थी। आगरा और वृन्दावन जब हम गए तो इंडियन होने के बावजूद भी हमने वहाँ कभी इतनी भीड़ नहीं देखी थी। उसके लिए तो यह सब किसी दुसरे ग्रह पर होने पर होने जैसा था। नॉएडा एक्सप्रेसवे का जाम मानो खत्म होता ही नहीं दिख रहा था। लगभग आधी रात को हम वापस आये। मामाजी को देख कर उसकी आखें भर आयी थीं, परन्तु हमेशा की तरह उसने आपके जोक्स से माहौल को खुशनुमा बना दिया। इतने सारे रिश्तेदारों के बीच घिरा होकर भी उसने अपनी प्यारी बातों और सहजता से सबका मन मोह लिया था।
चाचीजी के घर लंच पर यह भी समझ आया की यह इंसान हर इंडियन संस्कार की रेस्पेक्ट करता है, और अपने सवालों से उसे तब तक समझने की कोशिश करता है जब तक उसे समझ नहीं लेता। परिवारों में न रहते हुए भी परिवारों के संस्कार व मूल्य उसके लिए बहुत मायने रखते हैं। उसकी कुछ बातों को सुनकर मुझे अपने घर के बड़ों की याद आ गई काश वह जिन्दा हो और इस से मिल पाते तो उन्हें परिवार के इस नए सदस्य से मिलकर बहुत ही फक्र होता जो उनके खुद के बच्चे न समझ पाये वह सब इसे कभी समझाना ही नहीं पड़ता।
ज़िन्दगी इतनी मुश्किल भी नहीं जितनी हम इसे समझ लेते हैं, असलियत में इसमें समझने जैसा कुछ है ही नहीं बस एक रास्ता है जिस पर हर पल एक नया अनुभव है। गोवा की यात्रा भी एक अनुभव ही था, अनुभव समझने का, कि जैसे इस समुन्दर का कोई अंत नहीं वैसे ही संसार में मनुष्य की इच्छाओं का कोई अंत नहीं । लोगों के लिए जी भर कर पर पार्टी करना और अगले दिन फिर तैयार होकर नया पार्टी प्लेस ढूंढना, यही गोवा है। शायद उन्हें समुद्र की लहरें उतना आनंद नहीं देती जितने की वो उम्मीद लेकर यहाँ आतें हैं। बेचारा समुन्दर बेकार ही खुद पर गर्व करता है, उसकी आती जाती लहरों, पैरों के नीचे फिसलते रेत से परे और भी शक्तिशाली, लुभावने नशे हैं जिसकी चाह में लोग यहाँ आते हैं। हमारे लिए अकेला समुन्दर ही काफी था जिसने हमें मोह लिया। प्यारे समुन्दर, बुरा मत मानना पर हम सबने तुम्हें पहली बार देखा और तुम बहुत शक्तिशाली सुन्दर और लुभावने हो परन्तु वापस जाते हुए फिर ऐसा नहीं लगा की जल्दी यहाँ दुबारा आना चाहिये, इतने भी मनमोहक नहीं हो तुम। अपने लक्ष्यों और अपनों की भावनाओं से ज्यादा ज़रूरी तुम नहीं हो।
वापस आकर बचे-कूचे दिन बस कैसे निकले किसी को पता नहीं चला। हर रोज़ एक नया लक्ष्य और हमारे एलियन के लिए हर लक्ष्य की निश्चित समय सीमा। परेशानियों व उलझनों के बिना काम भी पूरे होने मुश्किल ही होते हैं। हर प्यारे व खूबसूरत दिनों के बाद वह दिन भी आया जब एलियन की वापसी थी। बस वही था सबसे कठिन दिन। सुबह से ही मायूसियों के बादल सभी के चेहरों पर साफ़ साफ़ दिखने लगे। जाना तो था ही, वो गया भी परन्तु नये लक्ष्यों के साथ।
हम सबके लिए ख़ुशी की बात यह है की अपने प्लैनेट से ज्यादा उसे हमारा ग्रह पसंद आया। मुझे पता है ,नये अनुभव लेने वह फिर जल्दी आएगा क्यूंकि जीवन के रास्ते खत्म नहीं होते, बस थोड़े थोड़े अंतराल पर हम ताज़ी साँसें लेने रुक जाते हैं।
~ वंदना ~
प्यारे लिविउ को समर्पित