दिव्य प्रकाश दुबे की अक्टूबर जंक्शन किताब केवल सुदीप और चित्रा की कहानी न होकर हर इंसान की कहानी कही जा सकती है। हर एक चैपटर अपने आप में एक सस्पेंस जैसा लगता है, जिसके आगे क्या होगा वो आप अंदर से जानते तो हैं परन्तु फिर भी खुद को विशवास नहीं दिला पाते। ऐसी कहानी जो हर किसी ने जी है या जी रहा है, कहानी जिस का कोई अंत नहीं और जो अधूरी भी नहीं लगती सच ही तो है जब तक ज़िन्दगी है हम अपने भीतर कहानियाँ लेकर घूम रहें हैं.
उपन्यास इतना खूबसूरत लिखा गया है की ऐसा लगता है आप उसी में जी रहे हो। बनारस शहर से शुरू हुई यह कहानी पाठकों को बनारस के घाटों पर जाकर सुदीप और चित्रा को याद करने पर मज़बूर कर देगी।
कहानियां कभी ख़तम नहीं होती बस वे जी जातीं हैं। बहुत ही लाइटवेट नावेल है जो आपको रिफ्रेश कर देगा। पढ़िएगा ज़रूर।
-वंदना