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मेरा चाँद

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मेरा चाँद

 

चाँद को ध्यान से देखना कभी,

दो परछाईं दिखाई देंगी।

हमेशा देखती थी मैं और समझ नहीं पाती थी

कौन हैं ये दोनों।

 

ये सिर्फ मुझे ही दिखते हैं

या सब देख पाते हैं इन्हें,

ये भी तो हो सकता है की ये मेरा वहम हो.

 

इतनी दूर है चाँद,

और वो दोनों इतने करीब,

ज़रूर कोई बहुत पुराने प्रेमी होंगे

जिनका प्रेम अमर हो गया होगा।

 

फिर भी यही सोचती थी,

कभी न कभी इस परछाई से बाहर आकर

दिखेंगे वो मुझे,

क्योंकि मैं जानना चाहती हूँ कौन हैं वो।

 

कल जब छत पर गई ,

चारों तरफ अन्धेरा था,

बिल्डिंग के ऊपर से निकलता चाँद

ऐसा लगा मानो कह रहा हो, की आज तुम जान जाओगी कौन हैं हम।

 

धुंधली सी परछाई धीरे धीरे साफ़ होने लगी,

और जो चेहरे मैं बरसों से देखना चाहती थी

वो अब साफ़ दिखने लगे, लगा जैसे इसी पल का इंतज़ार था।

आप और मैं इतनी दूर होकर भी बहुत पास थे, एक साथ थे, सबके सामने थे, बहुत करीब थे।

 

जिस दुनिया से डरते हैं ना हम,

वो सब भी आकर हमें देख रहे थे,

और हमसे कह रहे थे हमेशा साथ रखना हमें,

समझे आप कुछ मेरे चाँद,

 

ये किस्सा आज का नहीं,

बहुत पुराना है,

शायद तब का जब रात की चांदनी मैं

हम छत पर एक दुसरे से

बातें किया करते थे।

 

हम तब भी साथ थे,

हम आज भी साथ हैं,

और हम,

हमेशा साथ रहेंगे।

 

वंदना शर्मा

Cheshtha – coming soon
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